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Arun Gode

Others

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Arun Gode

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किसान जनांदोलन

किसान जनांदोलन

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कृषिप्रधान देश है भारत की पहचान,

धरतीपुत्रों की सदियों से कृषि है शान.

देश के जीडीपी में कृषि का अहम योगदान,

आर्थीक प्रगती में कृषि फूकती हमेशा जान.

कोई भी महामारी में हरबार बनती संकटमोचन.

कोरोना में भी दिया अपनी शक्ति का प्रमाण.

किसानों की समस्या से क्यों है शासक अनजान ?,

अपनी मांगो के लिए छेडना पडता है आंदोलन.

आजादी के पहिले शेटजी-भटजी ने किया शोषन,

आझाद भारत में शेटजी-भटजी, पूंजीपतियों का मिलन.

आजाद-गुलाम भारत में कृषकों की स्थिती एक्समान,

अपने हक्कों के लिए करते रोजही जंग का ऐलान.

गुलाम भारत में किसान-मजदूर की बिकट दास्तान,

जमीनदारी प्रथा से किसान-मजदूर था परेशान.

जमीनदारों के अत्याचारों से छुडानी थी जान,

स्वामि सहाजानंद स्वरस्वति ने किया जंग का ऐलान.

जमीनदारी प्रथा के विरोध में छेडा आंदोलन,

स्वामि ने कमजोर पडने नहीं दी युध्द की कमान.

प्रथम भारत किसान सभा का किया गठन,

लेकिन अंग्रेजों का था जमीनदारों को समर्थन.

किसान-मजदूर आंदोलन बना दिर्घकालिक जनांदोलन,

अंग्रेजोंने अंत में किया किसानों के मंगों का समर्थन.

आजाद भारत में दशा-दिशा में नहीं कोई परिवर्तन,

मिश्रीत अर्थ व्यवस्था का पूंजी ने किया प्रतिस्थापन.

कॉरपोरेट ने किसान-मजदूरों के शोषन का छेडा अभियान,

सरकार ने लाऐ तीन काले कॉरपोरेट कृषि कानुन.

बिना चर्चा,सहमती,विरोध के बावजुद बना कानुन,

सरकार ने नहीं किया संसदीय प्रणाली का पालन.

आनन-फानन में किया कृषि कानुन का क्रियावयन,

देश भर के किसानों ने विरोध में छेडा सडक आंदोलन.

पुंजीपति सरकार ने नहीं लिया आंदोलन का संज्ञान,

साठ से ज्यादा किसानों की प्रतिकुल मौसम ने ली जान.

फिर भी सरकार का किसान विरोधी कथन,

किसानों के लाभ के लिए बनायें तिन कृषि कानुन.

किसान बार-बार कर रही है सरकार निवेदन,

तिन कृषि कानुन है हमारे खेतों पर अतिक्रमण.

शेटजी,भटजी के साथ कॉरपोरेट का संक्रमण,

हमें नहीं चाहिए हमारी जमीन हडपनेवाले कानुन.

धरतीपुत्रों का सपना समतामूलक समाज का निर्माण,

लेकिन विषम अर्थ व्यवस्था का नेताओं ने किया निर्मान.

चुनाओं में खर्च होता काले पुंजीपतियों का धन,

फिर कॉरपोरेटरों के लिए बनता किसान विरोधी कानुन.

लाचार,शोषित किसान हुआं हालाकमान,

भविष्य में जमीन खोने की शंका से परेशान.

किसानों की शंका,भय नहीं है अकारण,

गुलाम भारत में जमीनदारों के हित में थे कानुन.

आझाद भारत में कॉरपोरेट के हित में है कृषि कानुन,

कॉरपोरेट करेगें अपने फयदे के लिए किसानों का शोषन.

विश्र्वमुद्राकोष,विश्र्व बैंक है विकसित देशों का धन,

विकासशील देशों को मदत,विकास के नाम पर देता ऋन.

ब्याज के साथ लगाता आर्थीक सुधार शर्तों का प्रावधान,

ताकि विश्र्व के धनवानों के लिए व्यापार शर्ते हो आसान.

किसान-मजदूरों का होता है कानुन शोषन,

कर्जबाजारी सरकारे नहीं कर सकती शर्तो का उल्लघन.

व्दितीय विश्र्वयुध्द में बर्बाद हुआ था जापान,

विदेशी कर्जे से फिर खडा हुआं विकसित जापान.

देश के नेताओं ने लुटा कर्ज में लिया विदेशी धन,

देश के विकास के बदले,किया कालेधन का भंडारण.

कर्ज और ब्याज के भुगतान से देश है परेशान,

आम आदमी का विकास नहीं लगता आसान।



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