STORYMIRROR

shekhar kharadi

Others

4  

shekhar kharadi

Others

क़िल्लत

क़िल्लत

1 min
248

चिलचिलाती धूप का गर्म पहरा

तपती जेठ का सूखा सन्नाटा

क्षितिज की तेज़ झनझनाहट

मस्तिष्क भ्रम की सारी उलझने

पानी की असंख्य क़िल्लते

गली शहरों में रोज़ झगड़े

पशु पक्षि सारे त्रस्त पुकारें

वन्य सृष्टि मुर्छित बन बैठी

नदी पोखर दूर दूर तक बंजर पड़े

भूमि व्यथित होकर रोती रही

बादल कब मेघ मल्हार बन के आए!


Rate this content
Log in