ख्वाइश अधूरी
ख्वाइश अधूरी
बचपन से ही मेरी
औरों से अलग ही
कुछ करने की
ख्वाइश रही है
अभी भी अलग करता हूँ
अलग ही सोचता हूँ
सच कहता सच ही
बोलने की कोशिश
हरदम करता हूँ
सच है तो ठीक है
नही तो हाँ मे हाँ
नही मिलाता हूँ
ईश्वर को मानता हूँ
ईश्वर भक्ति मे दिखावा
आडम्बर नही करता हूँ
भगवान से माँगने
मंदिर तीर्थ स्थानों
पर नही जाता हूँ
पैदा होते ही ईश्वर ने
किस्मत लिख दी है
किस्मत को बदलने की
मुझ मे औकात नही है
जब पढ़ता था सोचता था
वैज्ञानिक बनूंगा
कुछ नई खोज करूगा
सब ख्वाइश धरी
की धरी रह गई
पढ़ते पढ़ते रेलवे
मे नौकरी लग गई
ख्वाइश अधूरी रह गई
कवि बन गया हूँ
औरों से अलग अपनी
नई विधा मे लिख रहा हूँ
कविता लिखना भी
वैज्ञानिक खोज से
कुछ कम नही है
रस छंद अलंकार के
बिना कविता लिखना
भी एक नई खोज से
किसी तरह कम नही है ।
अपनी ख्वाइश
से लिखता हूँ
लिखकर अपनी
ख्वाइश पूरी करता हूंँ ।
अपनी विधा से हर
विषय पर इतना
कुछ नया ही लिखता हूँ ।