खुशी
खुशी
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ग़मों की महफिल में
खुशी को ढूँढ़ने चली थी..!
बुझी हुई शाम में,
रोशनी को ढूंढने चली थी..!
कितनी अंजानी थी...,
गैरो की दुनिया में,
अपनो को ढूंढने चली थी..!!!"
