अच्युतं केशवं
Others
खुशी धूप सी शीत की ,ग़म जाड़े की रात
दो हजार उन्नीस की,मित्र न पूछो बात,
मित्र न पूछो बात,स्वप्न हो सके न पूरे
जनगण त्रस्त मलीन,काज सब पड़े अधूरे,
जनमन पतझड़ मान,बसंती हँसी भूप की
जीवन दाहक जून,जली हर खुशी धुप सी।
मन आस तारा
सहज तुमने अपन...
कल लुटेरे थे ...
धूम्रपान कर ब...
छिपा हृदय निज...
उर सहयोगी भाव
भट्टी सी धरती...
अलग हो रूप रं...
आला वाले डॉक्...
भारोत्तोलन खे...