खुशी धूप सी शीत की
खुशी धूप सी शीत की
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खुशी धूप सी शीत की ,ग़म जाड़े की रात
दो हजार उन्नीस की,मित्र न पूछो बात,
मित्र न पूछो बात,स्वप्न हो सके न पूरे
जनगण त्रस्त मलीन,काज सब पड़े अधूरे,
जनमन पतझड़ मान,बसंती हँसी भूप की
जीवन दाहक जून,जली हर खुशी धुप सी।