खुली क़िताब के सफ़हे
खुली क़िताब के सफ़हे
खुली क़िताब के सफ़हे उलटते रहते हैं,
हवा चले न चले, दिन पलटते रहते हैं।
हमारी ज़िंदगी एक खुली क़िताब ही तो है,
सब इस क़िताब के हर पन्ने को पढ़ते हैं।
हमने ज़िंदगी में सब पर मोहब्बत लुटाई है,
बस वे ही हमसे बेवफ़ाई करते रहते हैं।
हमने किसी से कभी कोई उम्मीद नहीं की,
वे हैं कि हमसे हमेशा शिकवा करते हैं।
उजाले की दरकार कहां थी कभी हम को,
मगर वे हमारी आँखों में काजल भरते हैं।
हमको झूठ से नफ़रत थी, लेकिन वही मिला,
तभी तो वे हमारा सामना करने से डरते हैं।
खुदा की कसम, उन्हें ख़ुद से बढ़कर चाहा था,
लेकिन पता चला, वे किसी और पर मरते हैं।
उन्होंने सोचा था कि जी न पाएंगे उनके बिना,
हम पत्थर बनकर जीने का हौसला रखते हैं।
