खुले स्कूल ~एक अभिलाषा
खुले स्कूल ~एक अभिलाषा
खुले स्कूल, दूर हुई बाधा,
आओ शेखर, अनूप और राधा.
अब ना पहनना है मास्क
पढ़ना ही है सबका टास्क.
बस्तों पर से धूल हटाओ,
किताबों को फिर से सजाओ.
अब नहीं कोई है बीमारी,
हर जगह है खुशहाली.
हम बच्चे एक दुसरे से मिलते,
गिर गिर कर ही चलना सीखते,
अनावाश्यक के आडंबर छोड़ो.
स्कूल की तरफ अब रास्ता मोड़ो.
हर दिन सुबह प्रार्थना होती,
तत्पश्चात पी.टी. जो होती.
सुन्दर तन और मन दोनों होता.
अनुशासन में ना कोई रोता.
हर क्लास की लेक्चर में,
प्रेक्टिकल के सेक्शन में,
अनगिनत चीजे हम सीखते,
रोजाना हम यूँही सँवरते.
जीत जाते हम सब जंग,
मिलकर रहते बन सब अंग.
इस बीमारी ने किया सब दूर,
चला गया जीवन का सब नूर.
कितनो ने अपनों को खोया,
हर जगह विश्रांत हर कोई रोया.
आओ इससे सीखे और बढ़े हम,
आओ फिर सब मिल स्कूल चलें हम.
इस बीमारी से की लड़ाई,
सबने मिल इसे दूर भगाई,
आओ मिलकर फिर सब खेलें,
पहले जैसे अब सब जी लें.
