कहीं तो आशियाना होगा
कहीं तो आशियाना होगा
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कहीं तो आशियाना होगा हमारे सुनहरें सपनों का
महफूज होंगे सपनें हमारे साथ पा के अपनों का
मुसलसल सफर पर निकले हम जैसे कुछ दीवानों का
शमा-ए-ख़ास को भी इंतज़ार दिल फेक परवानों का
महकें आशियानें में दिल से खिले गुलिस्तानों का
महफ़िल-ए-तबस्सूम में गातें अनगिनत से तरानों का
ज़िंदगी से मिले खुशगवार, अज़ीज़ कुछ नज़रानों का
तहे दिल से शुक्रगुज़ार मेरा रोम-रोम उन मेहेरब़ानों का
हम क्या ग़ुज़ारिश करे कुछ तो किस्सा होगा हमारे फ़सानों का
कहीं तो एक आशियाना इंतज़ार में होगा हमारे सपनों का।
