खेल
खेल
बचपन की गलियां तो सब आज भी याद हैं मुझे।
उन गलियों में शाम को खेलना कूदना याद है मुझे।
उन गलियों में तो लगता है जैसे मैंने सदियां गुज़ारी हों।
उन गलियों में ही हमने जैसे हमारी खुशियां निहारी हों।
दोस्तों के साथ वहां तरह तरह के खेल खेलते रहते थे।
कभी क्रिकेट मैदान समझा, कभी फुटबॉल खेलते थे।
वहां कभी कबड्डी और कभी खो खो भी खेला करते।
हर आने जाने वाले इंसान से डांट भी खा लिया करते।
वहां एक चाट वाला और आइसक्रीम वाला आता था।
लगता था कि जैसे किस्मत की चाबी वाला आता था।
बचपन के दिन और बचपन की गलियां भूले नहीं जाते।
ये सच है कि वे बचपन के दिन कभी वापस नहीं आते।
