खौफ
खौफ
मैंने
जब पढ़ा
एक औरत का
जीवन साथी को
सम्बोधित भाव
'तुम्हारा होना
न होने जैसा होता है' ,
तो मेरे अन्दर
उसी औरत की शक्ल की
कई पुतलियां
खड़ी हो गईं
और मुझे
आगे पढ़ने से
रोकने लगी।
सबके चेहरों पर
खौफ था एक सा
देहरी से बाहर
दिखती सड़क पर होने का ।
वे नहीं चाहती
किसी भी
सच का यूँ
कहा जाना,
वो जानती हैं
मेरे पढ़ने पर,
हर भाव मे
ऐसे कई सच
निकलेंगे जो तोड़ देंगे
अहम
और शोषण की
सुन्दर रीतियां
आहत होगा मनस
पुरुष का
इसलिये
डरती है पुतलियां
वे बंधी हैं
संस्कारों,
परम्पराओ,
नियमो के
धागों से
उसी की उंगलियों मे।
उन्हे
रहना है
उसी सच के साथ
मगर उसे झूठ मानते हुए
उनका एक
ही मकसद है
किसी तरह ये जीवन
बिता लेना।
घुटन होने लगती है,
उनकी इस सोच से,
मैं चाहती हूँ जीना,
उन सबका जीना।
