कहानी
कहानी
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मैं कहानी सुनाता रहा, वो किरदारों में रही,
बात जज़्बातों की थी, और वो बातो-बातो में रही।
सावन की मदहोश शाम, और गरजती बरसती बारिश,
उसे मैं आंखों में भरता रहा, और वो जुल्फों में रही।
कभी कभी चाय की चुस्कियां भी बस बहना भर होती है,
उस पर मेरी बेतूकी बातें, और वो मतलबों में रही।
आंखों में उसके बचपना, और ग़ुस्सा उसके नाक पे है,
सफर बहोत लंबा था, और वो बीच बीच में रुकती रही।
समझ हुम् दोनो को थी, पर नासमझ वो बनती रही,
बात सिर्फ़ चाहत की थी, और वो उलझनों में रही।

