कहाँ गए वो रिश्तों के हत्यारे
कहाँ गए वो रिश्तों के हत्यारे
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रुनझुन बोली, वो अपनापन,
गीत गुंजाती, चहचहाता आंगन,
अकेले अब जा बैठे,
जो साथ में थे प्यारे।
जाने कहाँ गए वो ,
रिशतों के हत्यारे।
होली, दीवाली मिठाई की महक,
साथ मिल आती त्यौहारों की रंगत,
दरवाजा बन्द कर लेते,
जो खेले थे खेल न्यारे।
जाने कहाँ गए वो,
रिश्तों के हत्यारे।
सुख में खुशियों की बधाई देते,
दुख में संग में आंसू बहाते,
अब दिल दुखता है,
उल्टे हैं संवेग सारे।
जाने कहाँ गए वो,
रिश्तों के हत्यारे।
अपनापन कहीं खो गया,
बड़ों का सम्मान भी गया,
निज अहम में जीते हैं,
मिट्टी के गलियारे।
जाने कहाँ गए वो,
रिश्तों के हत्यारे।
