अच्युतं केशवं
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कैसी है यह अन्धता, किस हेतु यह दौड़।
जीवन का ना अंत हो, जीवन रथ तू मोड़।।
मन आस तारा
सहज तुमने अपन...
कल लुटेरे थे ...
धूम्रपान कर ब...
छिपा हृदय निज...
उर सहयोगी भाव
भट्टी सी धरती...
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