" काशी की गंगा "
" काशी की गंगा "
गली में गली, गली में गली,,,,
गली से होकर,घाट पर चला,,,,
बढ़ा हुआ था, गंगा जी का प्रवाह चला,,,
हर हर गंगे, बोलते बोलते चला,,,
ना घाट देखा,ना नाव देखी,,,
किनारे के मंदिर को,डूबते हुए देखा,,,
श्राद्ध श्रद्धा के लिए,लोग आ आए,,,
श्रद्धालुओं की, भीड़ भाड़ को देखा,,,
गंगाजी के उफ़ान में,सब कुछ बहते हुए देखा,,,
ऐसी गंगाजी ,कभी ना देखी मैंने,
जितनी बार मैं, काशी गंगा आया,,,
नवमी की खीर खाकर,सब ने गंगा जी का दर्शन किया,,,
नवमी की खीर खाने से, गंगाजी का प्रवाह घटा,,,
हर हर गंगे बोलते हुए, महादेव का जय-जयकार किया।
