कामगार लोग
कामगार लोग
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सौम्य, सख्त और दुविधा से जूझता हुआ,
रहा सहा......
पढ़ा - लिखा बेरोजगार।
मेलों की आतातायी में
उसके लायक खेलने के लिए
खिलौने कुछ भी नहीं,
पर उनका शोर बहुत है।
आशाओं के इन बीजों में
सड़न बहुत जल्दी
अपना घेरा बनाए जा रही है,
और रही सही कसर
कीट पतंगों ने पूरी कर दी है।
समय तो जैसे तैसे कट ही रहा है,
और साथ ही
कामगार लोगों में भी बंटता जा रहा है।।