जय माता दी
जय माता दी
माता को नहीं चाहिए नौ लाख का हार ।
जो सच्चे मन से चढ़ाओ वो माता करती स्वीकार ।।
अमीर - ग़रीब का भेद न जाने ।
माता तो सच्चे भक्तों को पहचाने ।।
श्रद्धा की सूखी रोटी भी माँ के लिए स्वर्ण समान ।
अश्रद्धा से चढ़ाया स्वर्ण छात्र भी माँ का अपमान ।।
माता नही देखती किसने कितना धन लगाया ।
मात्र भक्ति से ही प्रसन्न होती महामाया ।।
माता के है अनेको धाम ।
जो आ न सकते वो लेले बस माँ का नाम ।।
माता उनके काज सवारे ।
किस्मत वाले वो खड़ी माता जिनके द्वारे ।।
ब्रह्मा , विष्णु , महेश उनकी रचना ।
यह सृष्टि भी उनकी संरचना ।।
जो माँ की भक्ति में खो जाए ।
उसे कोई दुख न सताए ।।
धन की वर्षा करती नारायणी ।
विद्या देती दुर्गति नाशिनी ।।
झोलिया भरती शेरावाली ।
जय भवानी , जय हो काली । ।