जो जीवन का आरंभ वही होता अंत
जो जीवन का आरंभ वही होता अंत
जब हम जन्म लेते
सच में
एक खिलौना से ही होते
मां की कोख से
इस धरती पर आते तो
कितना रोते
आंख घुमाकर फिर
चारों तरफ देखते
एक नये परिवेश को
शायद जानने की कुछ
कोशिश करते
पहला संबंध तो मां से
ही जुड़ता
उसको ही पहचानते
उसे ही अपना मानते
उससे ही दिल का बंधन
एक स्नेह का धागा
जुड़ता
कहां से आते
कहां जाते
शरीर क्या
आत्मा क्या
ऐसे जटिल प्रश्नों से
अंजान
बचपन में तो हम बस
खेलते कूदते
दौड़ते भागते
खाते पीते
सोते जागते
आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता अपना
दायरा
मां के अलावा
हम परिवार, समाज,
दोस्त, रिश्तेदार सबको
जानते पहचानते
घर से बाहर
कदम बढ़ाते
स्कूल जाते
पार्क जाते
बाजार जाते
लोगों से मिलने उनके घर
जाते
समय व्यतीत होता रहता
एक दिन ऐसा भी आता कि
हमारी शिक्षा पूर्ण होती
अब हम नौकरी तलाशते या
किसी व्यवसाय से जुड़ जाते
जीवन में स्थायित्व चाहते
शादी ब्याह करते
अपना घर बसाते
अपना परिवार बढ़ाते
फिर परिवार में किसी
बालक का जन्म होता
हम बच्चों के माता पिता
और पालनहार बन जाते
हमारे मां बाप उनके दादा दादी
और नाना नानी
यह जीवन तो ऐसे ही चलता
रहता
बच्चे धीरे धीरे बड़े होने
लगते
हम जवानी से प्रौढ़ावस्था
की तरफ
ढलने लगते
काम करने का जोश पर
अभी भी कम नहीं होता
दायित्वों का बोझ भी कहीं
हल्का नहीं होता
स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां
बढ़ती उम्र के साथ
पैदा होने लगती
इसके प्रति ध्यान देने की
आवश्यकता पड़ती
उम्र के इस मोड़ पर
परिवार, पैसे,
अच्छा स्वास्थ्य,
किसी के प्यार और देखभाल
इन सबकी जरूरत पड़ती
सारी उम्र जो मेहनत करी
वह उम्र के आखिरी
पड़ाव पर नजर आती
जो जीवन का आरंभ
वही होता अंत
यह बात भी समझ आती
बुढ़ापे में तन हो जाता
कमजोर और
मन हो जाता एक बालक सा
ही
यह बात सबको पता
सबको दिखती
जिस पर बीतती
उसे तो और भी अच्छे से
समझ आती
बुढ़ापे में बूढ़े लोगों की
एक शिशु की भांति ही
होनी चाहिए देखभाल
यह बात उनके बच्चे कभी न भूले कि
जब वह थे बालक
वह थे छोटे तो
उनके माता पिता ने उनकी भी
कभी कितने
तन मन धन से करी थी
देखभाल
वैसी ही सेवा के हकदार
वह भी इस उम्र के आखिरी
पड़ाव पर होते।
