जन्मदिन पर
जन्मदिन पर
जब
छोटा था
प्रतीक्षा में
जन्मदिन की
बस दिन-दिन
गिनता जाता था।
जन्मदिन पर
केक काट कर
उपहारों से घिरा हुआ
फूला नहीं समाता था।
अपनों के संग
स्नेह-प्रेम के
रंगों में रंगा
मित्रों के बीच
राजा जैसा लगता था।
रोज जन्मदिन
क्यों नहीं मनता
प्रश्न सभी से करता था,
अगले दिन से
रोना चालू होता।
जन्मदिन आया
तो आकर चला क्यों गया ?
सब समझा कर थक जाते
पर आँसू नहीं रुकते थे
कुछ बहला कर
कुछ फुसला कर
मुझको समझाने लगते थे।
कितने
सुखद, सलोने
दिन बचपन के थे
जिद ठान,
लड़-झगड़ कर
सब मनचाहा
तब मनवा लेते थे।
अब बच्चा
मैं बड़ा हो गया
थोड़ा सा
जिम्मेदार हो गया
तब से अब तक
मना चुका हूँ
कई जन्मदिन अपने,
पर, माँग नहीं पाता मनचाहा
जिद से, लड़-झगड़ के।
अब तो
जब-तब
कभी साथ में
कभी अकेले
सोचा करता
बातें प्यारे बचपन की
जो कब आया
और कहाँ गया
देकर यादें बचपन की !
बचपन वाले
अल्हड़ से
खिले-खिले से
हरे-भरे से
धूम मचाने वाले
प्यारे से मेरे जन्मदिन !
आज भी मैं
संग-संग उनके
जादू में भरमाया
झूम रहा हूँ
घूम रहा हूँ
और उन्हीं को ढूँढ रहा हूँ
ढूँढ रहा हूँ।