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Vijay Kumar parashar "साखी"

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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जख्मी दिल

जख्मी दिल

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मैं तो सनम तुम्हारी यादों का मारा हूं

जिंदगी को छोड़ मौत का एक सहारा हूं,


हर तरफ से ही मैं तो दुनिया से हारा हूं

शूल तो छोड़ फूलों से बना अंगारा हूं,


किससे गिला करूं,किससे शिक़वा करूं

मैं अपनी ही दिल का एक टूटा तारा हूं


मैं तो सनम तुम्हारी यादों का मारा हूं

जिंदगी को छोड़ मौत का एक सहारा हूं


वो मुझे जब से ही छोड़कर गये हैं

मैं तो जिंदा होकर भी जिंदगी का मारा हूं


रात होती है बस मेरे ग़म को बढ़ाने के लिये,

इन काली रातों को लगता मैं एक बेचारा हूं


पत्थर भी रो उठते हैं ,ग़म मेरा सुनकर,

दरिया को पानी देनेवाला मैं एक सितारा हूं


मैं तो सनम तुम्हारी यादों का मारा हूं

जिंदगी को छोड़ मौत का एक सहारा हूँ


सबको को ही अच्छा लगता है उजाला

मुझे अच्छा लगता है अंधेरे का साला


मैं तो अंधेरे का नहीं उजाले का मारा हूं

अब आँखो से रोते रोते आंसू भी सूख गये हैं


मैं दर्द का नहीं, तुम्हारे प्यार का मारा हूं

मैं तो सनम तुम्हारी यादों का मारा हूं


जिंदगी को छोड़ मौत का एक सहारा हूं

मेरा भाग्य ही मुझसे तो सदा रहा रूठा है,


दिया उसने हमैं सदा ही अपना बस झुठा है

मैं तो अपनी तक़दीर से ही बड़ा बेसहारा हूं,


उनको बेपनाह चाहना ही शायद मेरी भूल थी

अपनी ही बेपनाह मोहब्बत पर दिल हारा हूं,


मैं तो सनम तुम्हारी यादों का मारा हूं

जिंदगी को छोड़ मौत का एक सहारा हूं,


मुझे अब ये जिंदगी बेवफ़ा सी लगती है

मे तो उसके बिना,बेमतलब का नारा हूं,


हर क्षण उसके ही ख्यालो में ख़ोया रहता हूं

मैं तो एक पागल सा भंवरा आवारा हूं,


मैं तो सनम तुम्हारी यादों का मारा हूं

जिंदगी को छोड़ मौत का एक सहारा हूं,


तुझे एक भी पल ये दिल भुलाकर तो देखे

ख़ुदा कसम उसी क्षण छोड़ दूंगा जग सारा हूं,


अब तू चाहे न चाहे मर्जी तेरी है सनम,

तेरे बगैर मैं तो बिना दिल की एक काया हूं,


मैं सांस भूल सकता हूं,लेकिन तुम्हें नहीं

गर जी भी गया तो भी एक बुझा हुआ तारा हूं,


मैं तो सनम तुम्हारी यादो का मारा हूं

जिंदगी को छोड़ मौत का एक सहारा हूं।



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