कीर्ति जायसवाल

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कीर्ति जायसवाल

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जीवन

जीवन

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"प्रथमा का चाँद" मैं था,

नित्य मैं हूँ बढ़ रहा।


'रंगमंच' जीवन यह, 

'स्वांग' मैं हूँ रच रहा।           

नृत्य मैं हूँ कर रहा,

नित्य मैं हूँ बढ़ रहा।


बढ़ता न सूरज है,

बढ़ते न तारे हैं,                    

सूरज से 'रौशन' हूँ

जग फिर 'दमक' रहा।            

नित्य गति हूँ कर रहा,

नित्य मैं हूँ बढ़ रहा।


माना कि 'पूर्णिमा'

जीवन में आएगी,

अगले ही क्षण मेरा 

जीवन घटाएगी।

क्षण-क्षण घटूँगा मैं,

सुख को रटूँगा मैं।

मन में यह दुःख भरा

"नित्य मैं हूँ घट रहा।"


एक 'रात्रि' माना 

'अमावस' की आएगी,

माना वह 'रात्रि' कि

जीवन ले जाएगी;

पर अंकुर फूटेगा,

जन्म नया पाऊँगा।

फिर से कहूँगा कि

"स्वांग मैं हूँ रच रहा,

प्रथमा का चाँद मैं था

नित्य मैं हूँ बढ़ रहा।"


(स्वांग=अभिनय, दमक=जगमगाहट)


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