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Sumit. Malhotra

Others

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Sumit. Malhotra

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जीवन एक अनसुलझी पहेली

जीवन एक अनसुलझी पहेली

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जीवन भर वो मुस्कराता रहा,

दिन में हंसता और हंसाता रहा

रात को आंसू बहाता रहा,

अपने गमों को भूलाने की कोशिश नाकाम करता रहा।

दिन में फूलों की तरह खुशबू बिखेरता रहा,

रातें तमाम जिंदगी की होकर परेशान काटता रहा।

रेत का था वो सहमा सा घरौंदा,

आंधियों के सारे में जीवन गुजारता रहा।

तन-मन-धन से था बेहद मजबूत मगर,

सपने पूरे ना होने का डर सताता रहा।

जीते जी चैन से सोना ना हुआ नसीब,

सब होते हुए भी जीवन था कितना अजीब।

क्यों ना चुनें हम जवां दिलों के टुकड़े,

हर शख्स की किस्मत में वरदान नहीं होते।

जब जुल्म की काली स्याही में गुम हो जाये राही कोई,

होते हैं बदनाम बेशक पर गुमनाम नहीं।

पसीने का स्वाद किसी मेहनतकश मजदूर से पूछो,

छाया में बैठकर अंदाजा लगाते हैं क्यों ।

हर बात समझता है इंसान मगर तब,

जब गुजर जाएगा पानी सर से।।



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