जिदंगी कोई खेल नहीं
जिदंगी कोई खेल नहीं
किसी की जिंदगी को खेल समझ लोग कितना दर्द देते हैं,
शिकायत करने की उनमें हिम्मत नहीं अजीब दर्द सहते हैं ।
कहीं धूप कहीं छाँव में जिदंगी हर लम्हा सजती संवरती है,
खूबसूरत, खुशनुमा माहौल हो तो जिंदगी फूलों सी महकती है ।
बनते बिगड़ते रहते हैं जिदंगी जीने के हालात कभी कभी यहाँ,
हर रोज जिदंगी की किताब में अहसासो का नया पन्ना जुड़ता यहाँ ।
गीली मिट्टी की सोंधी खुशबू से बीते पल महक महक उठते हैं,
सुन्दर लम्हे रेत की मानिन्द वक्त के साथ कितने जल्दी गुजरते हैं ।
जिदंगी बहुत खूबसूरत नदी सी है इसमें पत्थर ना फेंकिये,
खेल समझ कर किसी की जिंदगी से कभी आप खिलवाड़ न कीजिए ।