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Anurag Negi

Others

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Anurag Negi

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जग उठी सूरज की किरणें, चमक उठा

जग उठी सूरज की किरणें, चमक उठा

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जग उठी सूरज की किरणें, चमक उठा जग सारा,

ओस की बूंदें बिखरे, लगे सतरंगी गगन की धारा।

 

पेड़ो में हरियाली बिखरे, लगे पानी की फुहार,

रंगो का मिलन जैसे, दूर किसी प्रेमी की हो पुकार। 


वक़्त की दौड़ में आसमान चीरती पँछियों की टोली,

राग क़े सर चढ़ी फिर कोयल की बोली। 


धूप ढली – चांदनी बिखरी, जग सारा फूलो में सिमटा,

कवि की कलम रुकी नहीं, मन सारा पन्नो में लिपटा।

 

महकी खुशबू, गहरे सपने, बहती जीवन की नाव,

मन की चाहत रही मांगने फिर चमकते तारो की छाँव।

 

आसमान से टूटा तारा, है ख्वाहिशों का भंडार,

जीवन की अटल रहस्य दिखता उन तारों क़े पार। 


वक़्त ढला तो चांदनी भी गहरा गयी,

नये जीवन की चाह लिये, निन्द्रा पलकों में समा गयी,

नये जीवन की चाह लिये, निन्द्रा पलकों में समा गयी। 


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