जानते हैं पर मानते नहीं
जानते हैं पर मानते नहीं
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हम जानते है
की सूरत नहीं
सीरत देखनी चाहिये
पर सूरत ही देखते हैं
फिर इसका ख़ामियाज़ा
भी भुगतते है
पर मानते नहीं
हम जानते है
झूठ नहीं
बोलना चाहिये
झूठ बोलने से
बेज्जती हो जाती है
पर मानते नहीं
हम जानते है
नियमों को निभाना
चाहिए
तोड़ना नहीं चाहिए
पर मानते नहीं
हम जानते है
कथनी और करनी
में रहना चाहिये
पर मानते नहीं
हम नाराज़ होते है
तो सोचते हैं कि
कोई हमे मनाये
पर हम किसी
को मनाते नहीं
ज्ञान मुफ़्त का
झाड़ते रहते हैं
पर खुद ही
उसे कभी अमल
में लाते नहीं
दूसरों की ग़लतियाँ
उन्हें गिनवाते है
अपनी ग़लती
मानते ही नहीं