जाने क्यों..
जाने क्यों..
जाने क्यों सच सुनने से लोग कतराने लगे हैं,
तारीफ झूठी ही सही, सुनकर मुस्कुराने लगें हैं।
ख्वाबों की दुनिया में मसरूफ़ हैं इस कदर,
कि, हकीकत में आते आते इन्हें जमाने लगे हैं।
सच से वास्ता रहा न दूर दूर तक इनका कोई ,
झूठ, फरेब दिखावा इनको सब लुभाने लगे हैं।
वफ़ा दोस्ती सब रह गईं गुजरे जमाने की बातें,
चापलूसी करने वाले लोग इन्हें अब भाने लगे हैं।
उम्र सारी गुजार दी याद में जिसने इनकी,
ये चाहत को उसकी दिल से मिटाने लगे हैं।
कल वजह बने थे जो, इनकी मुस्कुराहटों की,
आज अपनी बेरुखी से दिल उनका ये दुखाने लगे हैं।
तारीफ ए शख्सियत करे क्या इनकी 'कमल',
अब तो लोग भी इनके हीे गुणगान गाने लगे हैं।