जादू
जादू
उस समय इस बात का एहसास
नहीं होता था,
परन्तु अब समझ आता है..
कि क्या कहना चाहती थीं वो
क्या बनाना चाहती थीं हमें
और क्या बिठाना चाहती थीं हमारे दिमाग में..
क्लास में आते ही कहती थीं
गणित से दोस्ती कर लो
उसके जैसा कोई दोस्त कभी
तुम्हें मिल नहीं सकता..
अंकों से खेलना शौक था उनका
कभी अंकों को आधा कर देती थीं तो कभी दुगुना,
कभी इकाई से लाखों पर पहुंचा देती थीं
तो कभी करोड़ों को शून्य से गुणा
कर शून्य कर देती थी..
अजब गजब जादू था उनके पास..
बोलती, "देखो मैं कुछ हाथ में लेकर आई क्या"..??
हम बोलते, "नहीं सिर्फ चौक या मार्कर है"
तो बोलती, "तुम नम्बर बोलो
मैं इस मार्कर से जादू करके दिखाती हूँ तुम्हें"..
कहीं से भी, कोई भी सवाल दे दो
चुटकियों में हल कर देती थीं वो..
अजब-गजब जादू था उनके पास
हाँ, जादूगरनी थीं वो
सच आज लगता है गणित की मैम जादूगरनी थीं..!!
