इतना फर्क क्यों...???
इतना फर्क क्यों...???
जब कोई मुफलिस
बिमारी से ग्रस्त होकर
बिस्तर पकड़ लेता है,
तो उसकी तरफ
सदय भाव से इंसानियत के नाते
मदद की हाथ
बढ़ाने को अक्सर
बहुत कम लोग नज़र आते हैं,
मगर जब कोई रईस
बिमार पड़ता है, तो
उसके चारों ओर
इतनी भीड़
क्यों जमा होती है?
आर्थिक रूप से
सबल-समर्थ इंसान के आसपास
दिखावे के (ग़ैरज़रूरी) मददगारों का
होना कहाँ ज़रूरी है...??
ऐसा फर्क क्यों
मुफलिसी और रईसी में...?
क्या मुफलिसों की कोई कद्र नहीं
इस जहाँ में...??
क्या रईसों के आगे-पीछे
दौड़-भाग करने की बुरी आदत
कभी खत्म होगी...??
क्या इंसानियत यूँ बेआबरू होकर
दौलत की चमचमाती रोशनी में
दम तोड़ देगी...??
कब ये दोगलापन खत्म होगा...???