इस पावस आओ मेरे गांव
इस पावस आओ मेरे गांव
हे यादव, माधव, बनवारी,
इस पावस आओ मेरे गाँव।
मिलकर खेलेंगे छुपन छुपैया,
यूकेलिप्टस के छांव।
नदी में तो नगर बस गये,
चलाएंगे थाली में नाव।
यमुना मैया बिकल हुई,
अब नही छुएंगी पाँव।
कू कू करती कोयल गायब,
बची है कौओं की कर्कश कांव।
गलियों से गऊएं गायब,
अब कारागृह उनका ठांव।।
नाग कालिया भाग रहे,
बचा के अपनी जान।
मानव घूम रहे बहु तेरे,
लेकर बिष की खान।
दूध दही की सूखी नदियाँ,
मदिरालय की आयी उफान।
बंशी, बट गायब हो गये,
अंग्रेजी धुन चल रही उतान।
बन उपवन में जन बस गये,
अब न बची भूमि श्मशान।
घर तो अब बन गये घरौंदा,
द्वार बेचारे बन गये लान।।
माखन मिसरी घर से गायब,
दूध बेचारा पहुंच रहा दुकान।
बाल गोपाल माडर्न हो गये,
कोल्ड ड्रिंक्स बन गयी शान।
गांव के खेलों का खेल खत्म,
अब क्रिकेट का है गुणगान।
लकुटी कमरिया कोउ न पूछे,
भारी बस्ते ने ले लिया स्थान।
चना चबैना और दही छाछ,
पिछड़ेपन की हुए पहचान।
चिप्स कुरकुरे काले बिस्कुट,
बने धनी और पाये पहचान।।