इन्सानियत का बंटवारा
इन्सानियत का बंटवारा
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तेरा अतीत भी राख है,
तेरा कल भी राख है।
क्यूं बटा धर्म के नाम पे,
तेरा वजूद राख है।
सांस है तो जी ले खुल के,
क्यूं इतना मोहताज है।
कुदरत कहां करती भेद है,
राजा या रंक एक दीन राख है।
तो क्यों करता है इतना विध्वंस,
चंद पल का तो सवाल है।
इन्सानियत पे नाज़ था,
इन्सान तो है..
इन्सानियत तार तार है,
तेरा वजूद राख है।
