हत्यारे
हत्यारे
दीमक की तरह चाटते जा रहे हैं अब सारे,
मेरे इर्द-गिर्द पनपते हैं हमेशा ख्वाबों के हत्यारे,
हज़ारों पवित्र ग्रंथों को पढ़कर भी रहते हैं ज्ञान से वे परे,
कत्ल-ए- पेशे की निष्ठा पर वे, जीते जी हैं मरे।
कभी वारदातें, कभी दुर्घटनाएं घट जाती हैं,
एक झटके में खुशियों की घड़ी हट जाती हैं,
ना रहम आता है किसी बेबस पर,
ना इन्हें करम आता है,
यह हत्यारे हैं साहब इनको, तो सिर्फ़ हत्यारा धरम आता है।
कभी अदालत में वकालत करते हैं,
कभी जजों से बगावत करते हैं,
कानून व्यवस्था में रुकावट करते हैं,
गर मिले सलाखें तो ,शिकायत करते हैं।
दौर बदलता रहता है,
हत्यारा बदलता रहता है,
कभी चाकू की धार बदलती है, तो कभी धनुष का तार बदलता रहता है
कभी घड़ी की वार बदलती है,
तो कभी बंदूक का मार बदलता रहता है,
यह हत्यारा है साहब! बस हमेशा लोगों के गले का हार बदलता रहता है।
यह हत्यारे है तो क्या हुआ, यह भी तो एक इंसान है,
जो गलती ना करें धरती पर, वह मनुष्य नहीं भगवान है,
पत्थरों से प्यार करो तुम, उनको अपना मानो,
प्यार के रंग में रंग लो उनको, उनके अंदर का इंसां पहचानो,
भ्रमण करो इस दुनिया का और जीवन का मूल्य जानो।