हत्यारे
हत्यारे
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आज न जाने क्यों
दिल में कुछ
तूफान सा है,
कोई तो अहसास
फिर से कहीं
उलझा सा है।
अरे ! तक्कलुफ़ क्या करूँ ,
आपसे क्या छुपाना
कुछ तो है
मन में ,
मेरा हाले दिल
बयां जो है करना।
क्या कहूँ
प्रश्नचिन्ह हूँ मैं
या प्रवाहिनी
स्पर्श करणी
प्रेम प्रतीक
लाल वर्ण धारीणी।
भ्रमित न हो
हत्यारन बन कर
ये सब पद
हैं मुझे मिले,
किसी की भावनाओं में
कोई पुष्प न मेरे लिए,
कभी खिले।
कत्ल चाहे
शरीर का हो
या फिर जज़्बातों का
हार जाता है, हर इंसान
किस्मत की लिखी
अनचाही लकीरों से।
