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Brij Kumar

Others

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Brij Kumar

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होली पर्व

होली पर्व

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आदित्य किरण दिन में बिखरी,

   चटक चांदनी रात में।

मौसम है रंगीन सुहाना,

   पिचकारी हर हाथ में।।


देवर भाभी की चुहल चली, 

    जीजा साली को रंग डारी। 

बाट जोहते होरियारे, 

    ले रंग भरी हर पिचकारी।। 


बात बात पर चुहल सूझती,

   पीसी जाती ठन्डाई।

रंगों से सब सराबोर,

   दोस्त देवर भौजाई।।


गौर रंग कंचन काया, 

    इठलाती सी मदमाती सी। 

होली के स्थल को जाती, 

   मस्तानी सी बलखाती सी।। 


चंचल चितवन घूंघट के संग,

   नव विवाहिता झांक रही।

हम भी खेलन जावें होली,

   मां से अनुमति मांग रही।।


झुंड चला होरियारों का,

   होली के रंग में सराबोर।

होली हुड़दंग हो रहा।

   हर गली मुहल्ला उठे शोर।।


ढोल मंजीरा ताल डुगडुगी,

    फाग की संगत बैठी है।

बहुत दिनों में सभी मिले हैं,

    भंग की पंगत बैठी है।।


कुसुम किसलय कुञ्ज कोकिल,

   गा रहे सब फाग में।

तन मन सब सिंचित हुये हैं,

   प्रेम औ अनुराग में। ।


तन प्रफुल्लित मन है हर्षित,

  उत्कंठा उन्मादित है।

ईश अनुकंपा बिखेरे,

   होलिका प्रतिपादित है।।


होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं सहित।


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