संगिनी
संगिनी
संगिनी तुम्हारी यादों में,
यूं जीवन ऐसे बीत रहा।
ज्यों माली अपनी बगिया को,
दे दे कर पानी सींच रहा।।
गम के अंधियारे घेरे,
संघर्ष शील जीवन बीता।
गिरे उठे उठकर दौड़े,
संग न छूटा परिणीता।।
बेतार हुआ संचार सदा,
भावनाओं का ज्वार बहा।
सीमाओं ने रख बांधा,
जब भी ज्यादा उत्साह चढ़ा।।
चांद चमकता है नभ में,
तारों को अपने संग लिए।
संदेश सुनाता जीवन का,
थोड़े कम ज्यादा रंग लिए।।
हमसफर तुम्हीं हो जीवन की,
राहों की डोर बंधी तुमसे।
अन्तर्मन में तुम ही छायी,
प्रथम मिलन हुआ जब से।।
कुछ बेहतर की आस लिए,
मैं भटक रहा वीरानों में।
मीठी मीठी बातें करके,
घाव दिये कुछ अपनों ने।।
कर्म योग का ज्ञान मिला,
पठन किया जब गीता का।
संगिनी हमेशा साथ रही,
व्यवहार निभाया सीता का।।
आधी कटी रही कुछ बाकी,
दायित्व पूर्ण कर लेना है।
राष्ट्र भक्ति प्रभु भक्ति में,
जीवन अर्पित कर देना है।।
गीता सार सदा प्रेरक,
जीवन में उसका पालन हो।
तथ्यों पर सोच विचार करें,
तब ही उसपर अनुपालन हो।।