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हेमंत "हेमू"

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हेमंत "हेमू"

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हम ह़मसबक हुआ करते थे

हम ह़मसबक हुआ करते थे

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हम ह़मसबक हुआ करते थे

मगर बराबरी ही न थी मेरी,

उनसे किसी पैमाने पे।

आहिस्ते चलता था,

मै तर्बियत की जमीं पे

वो बेफिक्र उड़ा करते थे

तर्बियत के आसमां पे,

उनके लफ्ज़ चाशनी में डूबे थे

मै अक्सर निशब्द रहता था,

वो ह़मसबक सियासत में माहिर थे

कुछ मुदर्रिस भी जिसमे शामिल थे,

मै फिक्रमंद खुद के मुस्तक़बिल का था

आहिस्ते से तर्बियत की जमीं पर चलता था।

फिर भी हम ह़मसबक हुआ करते थे

मगर हमारी बराबरी नहीं थी

किसी पैमाने पे।

यकायक ह़मसबक से वो,

दुश्मन बन गए थे...

जाने कौन सी,

दहशत में जी रहे थे..

शायद उन्हें इल्म इस बात का था..

जो बेशक उनकी दहशत का कारण था...

कि उनसे बेहतर मेरा मुस्तक़बिल था..

क्योंंकि हर मायने में मै उनसे बेहतर था..

ख्वाबों में उनके बेशक मेरा मुस्तकबिल आता था..

यूं ही थोड़े ना उस ह़मसबक सियासत का रुख,

मेरी तरफ़ मोड़ दिया था

कुछ मुदर्रिस भी जिसमे शामिल थे

इसीलिए थामकर फरेब का दामन

किरदार मेरा बर्बाद किया था

और इल्ज़ाम भी मुझ पर ही डाल दिया था।

जब मैंने असल खताकार का नाम लिया था

मुझे ही मुफ्तरी बता दिया था

वो अहमक व कायर थे।

और गिनती में मुझ से ज्यादा थे

साथ जिनके कुछ मुदर्रिस भी थे

जो बेशक कान के कच्चे थे।

तभी तो ह़मसबक मेरे

थामकर फरेब का दामन,

किरदार मेरा बर्बाद कर गए

हमारी बराबरी नहीं थी,

इसीलिए किसी पैमाने पे...

बस वक्त का तकाज़ा था

जो हम ह़मसबक हुआ करते थे।


                                   


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