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Nisha Nandini Bhartiya

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Nisha Nandini Bhartiya

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हे ! राम तुम कहाँ हो ?

हे ! राम तुम कहाँ हो ?

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हे ! राम तुम कहाँ हो ?

धरती के कण-कण में तुम

परती के जन-मन में तुम

क्षिति-जल-पावक में तुम

विचरते गगन-वात में तुम।

न्यायिक पंच परमेश्वर में तुम

विवादों में तुम संवादों में तुम

शांति में तुम अशांति में तुम

सब धर्मों में तुम कर्मों में तुम।


हे ! राम तुम कहाँ हो ?

हुआ पूरा वनवास तुम्हारा

लौट आए तुम अयोध्या में 

पलक पावड़े बिछाये हुए 

नर-नारी सब प्रतीक्षा में 

दुख के दिन अब दूर हुए 

सीता-राम अयोध्या में 

मंगल ध्वनि अब गूंज रही 

हर सूने प्रस्तर हृदय में। 


हे ! राम तुम कहाँ हो ? 

तुम आए वसुधा महकी

हर-हृदय प्राण तन-मन महका

भूमि का तृण-तृण चहका 

चहक उठा धरती आकाश 

पाताल तक दहल उठा 

गूंज रहा चहूँ ओर अब

यशोगान जयगान तुम्हारा

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा।


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