हैसियत क्या
हैसियत क्या
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मैं क्या और मेरी हैसियत क्या
ज़िन्दगी है तुझे मेरी जरूरत क्या ।
जुदा हुए तो गुजर गया है जमाना
पूछतें है वो अब भी खैरियत क्या ।
खामोशी भी खलती है लोगों को
पूछतें मेरी नासाज़ है तबीयत क्या ।
क्यूँ जाया करूँ उनपर अपनी राय
जो जानतें ही नहीं है नसीहत क्या ।
छोड़ भी दो अजय अब रूठना तुम
चाहते हो खुद की ही फजीहत क्या ।