गुरू का महत्व
गुरू का महत्व
बचपन में एक बात पढ़ी थी,
थी छोटी पर बात बड़ी थी।
कमरे में घर जाना हो,
घर में घुसना पड़ता है।
घर में घुसने को पहले
चारदीवारी मिलती है
चारदीवारी में पहले
द्वार को चुनना पड़ता है
इसीलिए तो बात पढ़ी थी
थी छोटी पर बात बड़ी थी ।।
द्वार भी हमने चुने लिया तो
पहले कुंडी होती है ।
कुंडी को जब हाथ लगाया
कमबख्त ताला हाथ में आया।
अंदर जाने से पहले
एक छोटी सी कुंजी की
और जरूरत पड़ती है
यही तो हमने बात पढ़ी थी,
थी छोटी पर बात बड़ी थी ।।
जीवन और समस्या भी
इसी तरह तो होते हैं
दिखते तो वह घर जैसे
पर चाबी से ही खुलते हैं
अध्यापक जब मिलते हैं
वही हमें बताते हैं
जीवन है क्या उद्देश्य हमारा
हमको यह समझाते हैं
बचपन में जो बात पढ़ी थी,
थी छोटी पर बात सही थी ।।
जीवन गर एक यात्रा है
समस्या भी तो मुकाम है
आना इनका जीवन में
यह तो बात आम है
इसलिए तुम घर मत देखो
पहले देखो द्वार को
द्वार से पहले ताला देखो
उससे पहले कुंजी देखो
यही तो हमने बात पढ़ी थी,
थी छोटी पर बात बड़ी थी।।
इस चाबी के खोजल में
मां के हाथ के भोजन में
बचपन की शरारत में
गुरुजनों की डाँठन में
यह चाबी मिल जाती थी
अब समझ में आता है
मात-पिता और गुरुजनों को
ईश्वर काहे कहते हैं ?
बचपन की जो बात पढ़ी थी,
थी छोटी पर बात बड़ी थी।।