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niraj shah

Others

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niraj shah

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ग़ुरबत

ग़ुरबत

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ग़ुरबत में लिपटे हाथ एक कहानी सुनाते हैं, 

खामोश रहते हैं और बे-ज़ुबानी सुनाते हैं। 

हथेली की लकीरें एक मज़ाक ही तो हैं, 

बीतेगी कैसे अब ये ज़िंदगानी सुनाते हैं।।


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