ग़ुरबत
ग़ुरबत
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ग़ुरबत में लिपटे हाथ एक कहानी सुनाते हैं,
खामोश रहते हैं और बे-ज़ुबानी सुनाते हैं।
हथेली की लकीरें एक मज़ाक ही तो हैं,
बीतेगी कैसे अब ये ज़िंदगानी सुनाते हैं।।