गुमशुदा की तलाश
गुमशुदा की तलाश
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मैं हँसा तो लगा मैं फंस गया हूँ
ज़िन्दगी के घेरे में खो गया हूँ
पर कुछ बेचैनियां
अन्दर के जज़्बातों को
इधर से उधर रख रहीं थीं,
कुछ बेचैनियां
अन्दर ही अन्दर कह रहीं थीं
कहां फंस रहे हो?
ज़नाब अब भी संभल जाओ।
जो हसीन सा ख्वाब पाला है
अच्छा होगा,
जो बाहर निकल आओ।
ये डगर बहुत कठिन है
संभल न पाओगे
गिर गये जो कभी ,
उठ न पाओगे
यह सुन कब से परेशां सा हूँ
यह कौन था आज तक हैरान सा हूँ
ढूँढ़ रहा हूँ कभी बाहर तो कभी भीतर
उसी गुमशुदा की तलाश में हूँ।