गोरैया
गोरैया
नन्हीं गोरैया
आती थी मेरे घर भी
रोज सुबह जगाती थी
अपनी चहचहाहट से
रहती थी यहीं
मेरे आंगन में लगे
अमरूद, पपीते,
आम और बेल के पेड़ों पर
फुदकती थी चहचहाती थी
घुस जाती कभी घर में
खिड़कियों से
घूमती हर कमरे में
फिर निकल जाती
खिड़कियों से
नल के पास जमा पानी में
किलकारियां भरती
चीं चीं कर नहाती थी
बड़ी रौनक रहती थी
खेतों में चुगती थी दाने
कई बार मैंने भी दिया
खाने को चावल, गेहूं
रखता मिट्टी के बर्तन में
पीने का ठंडा पानी
खूबसूरत गोरैया
जब उड़ती झुंड में
चीं चीं चीं की
मधुर आवाज़ करती
पंखों को फैलाए
दूर आसमान में
आसमान और भी
खूबसूरत हो जाता
दिन भर चुगती दाने
शाम होते लौट आती
अपने घोंसले में
अब नहीं दिखती
जाने कहां चली गई
वो नन्हीं गोरैया
सूना हो गया
घर आंगन
उसके बिना।
