घर की रेल
घर की रेल
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कितना निश्चल ,कितना निर्वेद
होता है भाई- भाई का प्रेम।
पल में कट्टी पल में बट्टी
दूसरे पल ही मस्ती मस्ती ।
धींगा मस्ती दौर सुहाना
चोट दर्द न कोई उलाहना।
छोटा बड़ा दोनो बराबर
जिसका जोर चला वही ऊपर।
अनोखा बचपन अनोखे खेल
बच्चों से चलती घर की रेल ।
दादू इंजन सबसे प्यारे
हर डिब्बे के वही सहारे ।
हर शिकवा शिकायत करते दूर
सुलाह करवा देते नए रूप ।
अपना बचपन अपने पोतों में पाते
उनकी झलक दिखा अपूर्व आनंद दिलाते।
जीवन का असली मजा यही है
घर की रेल यूँ ही दौड़ती रहे दुआ है।