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Haripal Singh Rawat (पथिक)

Others

3.3  

Haripal Singh Rawat (पथिक)

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घनघोर गगन

घनघोर गगन

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बन घनघोर गगन, 

बरसा घन-घन।

शीत वात लिये रुप प्रचन्ड़,

कंपित कर जाती, 

यह तृप्त सा मन।

बन घनप्रिया,

कभी सौदामनी बन।

बरसे यह घन, 

बरसे घन-घन।


करती वसुन्धरा, मंगलस्नान,

वारि बूँद, करते ननाद।

खुशबू बिखेरती, चँहु दिशा,

अरु वात करे कंपित

तृष्ण सा मन।

बन घनघोर गगन,

बरसा घन-घन।


तरु पर्णों पर गुंजित बूंदें,

व्योम दरक भी आँखें मूंदे,

मरु, धरा संग खेले कुछ यूँ,

याद दिलाये, मृद बचपन।

बन घनघोर गगन,

बरसा घन-घन।


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