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AKIB JAVED

Others

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AKIB JAVED

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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हम किसी को अब क्यूँ लुभाते नहीं

बात ये है कि कुछ छिपाते नहीं


हम बसा कर दिल में भुलाते नहीं

देख कर चुपके से यूँ जाते नहीं


दीन  को  है बचाया  सजदे  से

वो  हुसैनी नज़र क्यूँ आते नहीं


सब लूटा डाले जो कर्बोबला में

दीन के ख़ातिर सर झुकाते नहीं


ख़ैर कब  तक  उठा  रहे नखरे

चाँद को पास क्यूँ  बुलाते नहीं


बिन  बुलाए  कभी  नही  आते

पहले जैसे क्यूँ रिश्ते नाते नहीं


साथ  देंगे  सदा  ये  वादा रहा

हाथ  को थाम  के छुड़ाते नहीं



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