गाँव से हूँ मैं
गाँव से हूँ मैं
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भोली सूरत सादे वेश में
थोड़ा अकडू , थोड़ा बेबाक
दुनियादारी की समझ नहीं ज्यादा
पर दिल से बुरा नहीं हूँ मैं
गाँव शहर की जंग में
मेरे संस्कार छोटे पड़ते
मेरा ज्ञान काम ही रहता
लगता जैसे लड़ रहा हूँ मैं
गाँव शहर के मेल में
गलत सा साबित होता
यूँ तो डरता नहीं किसी से
गाँव का दबंग हूँ मैं
पला बड़ा हुआ गाँव की मिट्टी में
फिर भी शहर के रंग में रंगता
नयी पहचान नयी तालमेल बनता
लेकिन अपनी ज़मीन से जुड़ा हूँ मैं
शहर ने पाँव पसारे मेरे जहाँ में
उठता गिरता सा चलता रहता
लगता जैसे किसी जंग में फँसा
फिर भी हार मानता नहीं हूँ मैं
गाँव से हूँ मैं