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Chitra Yadav

Others

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Chitra Yadav

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एक रोज़

एक रोज़

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एक रोज़ अपने बारजे में

कुछ पौधे लगाए थे मैंने


कुछ रोज़ पहले उन पर कलियाँ मुस्कुराईं थींं

फिर झूमते खिलखिलाते फूल खिले

और मेरे तन्हा बारजे में

बहार आई थी ।


आज देखती हूँ इन्हें ,

बेहद उदास नज़र आते हैं ,

जिंदगी से खफ़ा हैं या शायद मुझसे

बेहद नाराज़ नज़र आते हैं

बेरंगत -बेनूर नज़र आते हैं ।


इन फूलों के भी कुछ,

ख़्वाब होते होंगे शायद ....

अलबत्ता डाली पर लटके हुए ही

सूख जाना किसको भायेगा भला....


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