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Kamal Purohit

Others

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Kamal Purohit

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एक रिश्ता

एक रिश्ता

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ख्वाब को हमने सजाया

आँखों को कितना रुलाया


दिल मेरा नादान मुझको

जाग कर रातों सताया


जिंदगी की ठोकरों से

जब गिरा तो उठ न पाया


ठोकरें जब जब लगी तो

हौसलों ने दम लगाया


कुछ तो कर के है दिखाना

सोच कर मैं मुस्कुराया


वो समझता क्या मुझे अब

मैं उसे समझूँ पराया


एक रिश्ता ज़िंदगी का

दिल ने दिल से भी बनाया


आज के आभासी जग में

गैर अपने घर पराया



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