एक मतला दो शेर
एक मतला दो शेर
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बात सबके दिल की समझूँ और कुछ बोलूं नहीं
एक दिल मेरा भी है ये कैसे मैं भूलूं नहीं
अश्क करते हैं ग़िला तो रूठ जाता इश्क है
मैं दबा के सिसकियां फिर मुस्कुरा पाऊं नहीं
बेमुरव्वत दिल बेचारा है धड़कता आज भी
टूट के भी जी रहे हैं दर्द बतलाऊँ नहीं