एक दर्द
एक दर्द
यह क्या है ?
एक दर्द !
हर पल रिसता है।
मैं जितना ठहराता हूँ।
इस मन को,
यह सोच के रथ पर
सवार रहता है।
भूल से,
जो भूले कभी।
वक्त बार-बार
कंकड़ इसमें धरता है।
एक दर्द
हर पल रिसता है।
क्यों ?
भागता हूँ।
पता नहीं !
जब कि
हाथ मेरे कुछ भी नहीं।
हकीकतों को जानकर भी,
भुलावों में रहता हूँ।
अकेले लड़ने से,
कहाँ हारता हूँ।
पर यह
क्या है
जंग खत्म नहीं होती।
चैन की सांस लेने की
हर कोशिश में,
जिंदगी दिन-रात,
हांफती है फिरती।
हम करते हैं
हम भागते हैं।
पर जो सच है !
किसी को
कोई
परवाह नहीं होती।
फिर क्यों ?
करते है।
इन सवालों की,
कोई
जवाब देही नहीं होती।
बहुत भीड़ में है सब
पर अकेले हैं।
कभी खुद से,
चाह कर भी
मुलाकात नहीं होती।