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Nisha Nandini Bhartiya

Others

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Nisha Nandini Bhartiya

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एक अरसा हो गया

एक अरसा हो गया

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एक अरसा हो गया 

आईये बैठिए,             

मिलिए कुछ देर यहां भी,

अपने आप से मिले           

एक अरसा हो गया ,

आज बाजार में भीड़ है        

बेहद घुटन है,

चलो किसी दुकान से        

थोड़ा प्यार खरीद लें, 

बहुत तड़के पार्क में            

घूम आते हैं लोग,

आओ उनको थोड़ा और       

जगाते हैं हम। 

हर रोज आईने में           

चेहरा देखते हैं हम, 

फिर भी वे रोज            

आईना दिखाते हैं हमें।

मौसम बहुत आए गए         

मेरे घर में भी ,

पर सुकून का मौसम            

न हुआ मयस्सर मुझे। 

हर तरफ हमने की          

सच बोलने की कोशिश, 

हम अपनी ही गली में       

लावारिस हो गए। 

वे ढूँढ़ते हैं उफक के        

उजाले की किरण ,

हम "निशा" में         

संजीदगी के निशां छोड़ गए ।



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