एक अनजान
एक अनजान
एक अनजान सा बच्चा,
मुझे लगातार टकटकी लगाए,
देखे जा रहा था .................,
पता नहीं क्या चाहता था मुझसे,
मटमैले से कपड़े .............
पैबन्द से सने हुए.............,
बदन पर मैल की गहरी परतें ,
खामोश निगाहें ऑखे बुझी सी,
जैसे कह रहा हो तुम........,
मेरे दर्द को समझ नहीं पाओगे ।
मैंने भी सोचा कुछ बातें की जाये,
अपना हाथ आगे बढ़ाया,
और बोला मै तुम्हारा दोस्त,
तुम मुझसे दोस्ती करोगे ।
अरे साहब मुझ जैसे बच्चों का,
यहाँ कोई दोस्त नहीं बनना चाहता ,
हम ठहरे अनपढ़, गंवार,
कोई हमारे पास नहीं आता,
क्या आप ये समझ पाओगे ।
साहब अनाथ हूँ मैं .........,
ना कोई घर ना कोई ठिकाना,
दर दर भटकता रहता हूँ,
चाहता हूँ मैं भी पढना ....,
क्या आप मुझे पढाओगे ।
मैं तो एक नादान बच्चा,
देश का भविष्य हूँ मैं.....,
मेरी ऑखों की उदासी पढी आपने,
तो क्या आप मेरा भविष्य सुधारोगे।
मन यह सुन विचलित हो गया,
ऑखों से ऑंसू छलकने लगे,
उस अनजान बालक को मैंने ,
शिक्षित करने का संकल्प लिया ।
उसे दर दर भटकने से रोक,
अनाथालय में भेज ,
अपना कर्तव्य पूरा किया ।।
